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श्लोक 140
श्लोक
2.19.140
কেশাগ্র-শত-ভাগস্য
শতাṁশ-সদৃশাত্মকঃ
জিবঃ সূক্ষ্ম-স্বরূপো ’যṁ
সঙ্খ্যাতীতো হি চিত্-কণঃ
केशाग्र - शत - भागस्य शतांश - सदृशात्मकः ।
जीवः सूक्ष्म - स्वरूपोऽयं सङ्ख्यातीतो हि चित्कणः ॥140॥
अनुवाद
"यदि बाल के अगले भाग को सौ हिस्सों में बांटा जाए और फिर उनमें से एक हिस्से को लेकर फिर से सौ हिस्सों में बांटा जाए, तो वह बहुत छोटा भाग अनगिनत जीवों में से एक के आकार के बराबर होगा। वे सभी चित्कण, यानी आत्मा के कण होते हैं, पदार्थ के नहीं।"
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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