महाप्रभु देखि’ ‘सत्य’ कृष्ण - दरशन ।
निजाज्ञाने सत्य छा ड़ि’ ‘असत्ये सत्य - भ्रम’ ॥98॥
अनुवाद
जब लोगों ने श्री चैतन्य महाप्रभु को देखा, तो वास्तव में उन्होंने कृष्ण का ही दर्शन किया, लेकिन अपने अपूर्ण ज्ञान के कारण ही उन्होंने गलत वस्तु को कृष्ण के रूप में स्वीकार कर लिया था।