प्राते प्रभु - सङ्गे आइला जल - पात्र लञा ।
प्रभु - सङ्गे रहे गृह - स्त्री - पुत्र छाड़िया ॥90॥
अनुवाद
अगले दिन, कृष्णदास श्री चैतन्य महाप्रभु के संग उनके जलपात्र को धारण करते हुए वृंदावन गए। इस प्रकार कृष्णदास ने अपनी पत्नी, घर और बच्चों को त्याग दिया, जिससे कि वह श्री चैतन्य महाप्रभु के साथ रह सकें।