श्री चैतन्य चरितामृत » लीला 2: मध्य लीला » अध्याय 18: श्री चैतन्य महाप्रभु द्वारा वृन्दावन में भ्रमण » श्लोक 88 |
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| | श्लोक 2.18.88  | প্রভু তাঙ্রে কৃপা কৈলা আলিঙ্গন করি
প্রেমে মত্ত হৈল সেই নাচে, বলে ‘হরি’ | प्रभु ताँरे कृपा कैला आलिङ्गन करि ।
प्रेमे मत्त हैल सेइ नाचे, बले ‘हरि’ ॥88॥ | | अनुवाद | तब श्री चैतन्य महाप्रभु ने कृष्णदास को गले लगाते हुए उसे अपनी अहेतुकी कृपा का वरदान दिया। कृष्णदास प्रेम के आवेग में उन्मत्त हो गया, और उसके शरीर के भाव बदलने लगे और वो नाचने लगा और भगवान हरि का पवित्र नाम जपने लगा। | | |
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