श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 2: मध्य लीला  »  अध्याय 18: श्री चैतन्य महाप्रभु द्वारा वृन्दावन में भ्रमण  »  श्लोक 86
 
 
श्लोक  2.18.86 
রাজপুত-জাতি মুঞি, ও-পারে মোর ঘর
মোর ইচ্ছা হয — ‘হঙ বৈষ্ণব-কিঙ্কর’
राजपुत - जाति मुञि, ओ - पारे मोर घर ।
मोर इच्छा हय - ‘हङवैष्णव - किङ्कर’ ॥86॥
 
अनुवाद
"मैं राजपूत जाति का हूँ और मेरा घर यमुना नदी के उस पार है। किन्तु मैं वैष्णव का भक्त बनना चाहता हूँ।"
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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