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श्लोक 2.18.84  |
প্রভুর রূপ-প্রেম দেখি’ হ-ইল চমত্কার
প্রেমাবেশে প্রভুরে করেন নমস্কার |
प्रभुर रूप - प्रेम दे खि’ हइल चमत्कार ।
प्रेमावेशे प्रभुरे करेन नमस्कार ॥84॥ |
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अनुवाद |
महाप्रभु के विलक्षण सौंदर्य और प्रेम के दर्शन से कृष्णदास पूर्ण रूप से विस्मित और रोमांचित हो उठा। अपने प्रेम की पराकाष्ठा से वह महाप्रभु को सादर दंडवत प्रणाम करने लगा। |
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