श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 2: मध्य लीला  »  अध्याय 18: श्री चैतन्य महाप्रभु द्वारा वृन्दावन में भ्रमण  »  श्लोक 72
 
 
श्लोक  2.18.72 
‘দ্বাদশ-আদিত্য’ হৈতে ‘কেশী-তীর্থে’ আইলা
রাস-স্থলী দেখি’ প্রেমে মূর্চ্ছিত হ-ইলা
‘द्वादश - आदि त्य’ हैते ‘केशी - तीर्थे’ आइला ।
रास - स्थली देखि प्रेमे मूर्च्छित हइला ॥72॥
 
अनुवाद
प्रस्कंदन नामक पुण्यस्थली के दर्शन के पश्चात श्री चैतन्य महाप्रभु द्वादशादित्य गये। वहाँ से उन्होंने केशी-तीर्थ के लिए प्रस्थान किया और जब उन्होंने उस स्थान को देखा जहाँ रासनृत्य होता था, तो वह प्रेमावेश में तत्काल बेहोश हो गए।
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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