“‘हे प्रियतम! आपके चरणकमल अति कोमल हैं, इसलिए हम उन्हें धीमे-धीमे अपने स्तनों पर रखती हैं, इस डर से कि कहीं आपके पैरों को ठेस न पहुँच जाए। हमारा जीवन केवल आप पर टिका है। इसलिए, हमारे मन में हमेशा यह चिंता बनी रहती है कि जब आप जंगल के रास्ते पर घूमते हैं तब कहीं कंकड़-पत्थरों से आपके पैरों को चोट न लग जाए।’” |