श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 2: मध्य लीला  »  अध्याय 18: श्री चैतन्य महाप्रभु द्वारा वृन्दावन में भ्रमण  »  श्लोक 63
 
 
श्लोक  2.18.63 
সব দিন প্রেমাবেশে নৃত্য-গীত কৈলা
তাহাঙ্ হৈতে মহাপ্রভু ‘খদির-বন’ আইলা
सब दिन प्रेमावेशे नृत्य - गीत कैला ।
ताहाँ हैते महाप्रभु ‘खदिर - वन’ आइला ॥63॥
 
अनुवाद
प्रत्येक दिन प्रभु प्रेम भाव से कीर्तन और नृत्य करते थे। अंत में वे खदिरवन गए।
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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