श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 2: मध्य लीला  »  अध्याय 18: श्री चैतन्य महाप्रभु द्वारा वृन्दावन में भ्रमण  »  श्लोक 44
 
 
श्लोक  2.18.44 
কভু কুঞ্জে রহে, কভু রহে গ্রামান্তরে
সেই ভক্ত, তাহাঙ্ আসি’ দেখযে তাঙ্হারে
कभु कुञ्जे रहे, कभु रहे ग्रामान्तरे ।
सेइ भक्त, ताहाँ आसि’ देखये ताँहारे ॥44॥
 
अनुवाद
इस प्रकार किसी न किसी बहाने गोपाल कभी जंगल की झाड़ी में तो कभी गाँव में ठहरते हैं। जो भक्त होता है वह देवता के दर्शन करने आता है।
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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