श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 2: मध्य लीला  »  अध्याय 18: श्री चैतन्य महाप्रभु द्वारा वृन्दावन में भ्रमण  »  श्लोक 40
 
 
श्लोक  2.18.40 
গোপাল সঙ্গে চলি’ আইলা নৃত্য-গীত করি
আনন্দ-কোলাহলে লোক বলে ‘হরি’ ‘হরি’
गोपाल सङ्गे चलि’ आइला नृत्य - गीत करि ।
आनन्द - कोलाहले लोक बले ‘हरि’ ‘हरि’ ॥40॥
 
अनुवाद
चैतन्य महाप्रभु गोपाल जी की मूर्ति के संग साथ-साथ चलते हुए कीर्तन करते र नाचते चले जा रहे थे। लोगों की एक बड़ी और खुशमिजाज भीड़ भी साथ-साथ श्री कृष्ण के दिव्य नाम "हरि! हरि!" का कीर्तन करती हुई चल रही थी।
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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