श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 2: मध्य लीला  »  अध्याय 18: श्री चैतन्य महाप्रभु द्वारा वृन्दावन में भ्रमण  »  श्लोक 32
 
 
श्लोक  2.18.32 
প্রাতঃ-কালে প্রভু ‘মানস-গঙ্গা’য করি’ স্নান
গোবর্ধন-পরিক্রমায করিলা প্রযাণ
प्रातःकाले प्रभु ‘मानस - गङ्गा’य करि’ स्नान ।
गोवर्धन - परिक्रमाय करिला प्रयाण ॥32॥
 
अनुवाद
सुबह के समय श्री चैतन्य महाप्रभु ने मानस-गंगा नामक झील में स्नान किया। इसके बाद उन्होंने गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा की।
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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