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श्लोक 2.18.229  |
শ্রী-রূপ-রঘুনাথ-পদে যার আশ
চৈতন্য-চরিতামৃত কহে কৃষ্ণদাস |
श्री - रूप - रघुनाथ - पदे यार आश ।
चैतन्य - चरितामृत कहे कृष्णदास ॥229॥ |
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अनुवाद |
श्री रूप और श्री रघुनाथ के चरणकमलों में प्रणााम करते हुए और उनकी दया की सदा इच्छा रखते हुए मैं कृष्णदास उनके पदचिह्नों पर चलते हुए श्री चैतन्य-चरितामृत का वर्णन कर रहा हूँ। |
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इस प्रकार श्री चैतन्य-चरितामृत, मध्य लीला, के अंतर्गत अठारहवाँ अध्याय समाप्त होता है । |
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