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श्लोक 2.18.228  |
চৈতন্য-চরিত্র এই — ‘অমৃতের সিন্ধু’
জগত্ আনন্দে ভাসায যার এক-বিন্দু |
चैतन्य - चरित्र एइ - ‘अमृतेर सिन्धु’ ।
जगत् आनन्दे भासाय यार एक - बिन्दु ॥228॥ |
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अनुवाद |
श्री चैतन्य महाप्रभु की लीलाएँ अमृत के सागर के समान हैं। इस सागर की एक बूंद भी पूरे विश्व में दिव्य आनंद की बाढ़ ला सकती है। |
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