श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 2: मध्य लीला  »  अध्याय 18: श्री चैतन्य महाप्रभु द्वारा वृन्दावन में भ्रमण  »  श्लोक 228
 
 
श्लोक  2.18.228 
চৈতন্য-চরিত্র এই — ‘অমৃতের সিন্ধু’
জগত্ আনন্দে ভাসায যার এক-বিন্দু
चैतन्य - चरित्र एइ - ‘अमृतेर सिन्धु’ ।
जगत् आनन्दे भासाय यार एक - बिन्दु ॥228॥
 
अनुवाद
श्री चैतन्य महाप्रभु की लीलाएँ अमृत के सागर के समान हैं। इस सागर की एक बूंद भी पूरे विश्व में दिव्य आनंद की बाढ़ ला सकती है।
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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