श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 2: मध्य लीला  »  अध्याय 18: श्री चैतन्य महाप्रभु द्वारा वृन्दावन में भ्रमण  »  श्लोक 226
 
 
श्लोक  2.18.226 
আদ্যোপান্ত চৈতন্য-লীলা — ‘অলৌকিক’ জান’
শ্রদ্ধা করি’ শুন ইহা, ‘সত্য’ করি’ মান’
आद्योपान्त चैतन्य - लीला - ‘अलौकि क’ जान’ ।
श्रद्धा करि’ शुन इहा, ‘सत्य’ करि’ मान’ ॥226॥
 
अनुवाद
श्री चैतन्य महाप्रभु की लीलाएँ अनादि से ही अलौकिक हैं। उनको श्रद्धा से सुनना और उन्हें सत्य मानना चाहिए।
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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