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श्लोक 2.18.226  |
আদ্যোপান্ত চৈতন্য-লীলা — ‘অলৌকিক’ জান’
শ্রদ্ধা করি’ শুন ইহা, ‘সত্য’ করি’ মান’ |
आद्योपान्त चैतन्य - लीला - ‘अलौकि क’ जान’ ।
श्रद्धा करि’ शुन इहा, ‘सत्य’ करि’ मान’ ॥226॥ |
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अनुवाद |
श्री चैतन्य महाप्रभु की लीलाएँ अनादि से ही अलौकिक हैं। उनको श्रद्धा से सुनना और उन्हें सत्य मानना चाहिए। |
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