श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 2: मध्य लीला  »  अध्याय 18: श्री चैतन्य महाप्रभु द्वारा वृन्दावन में भ्रमण  »  श्लोक 201
 
 
श्लोक  2.18.201 
সেইত ‘গোসাঞি’ তুমি — সাক্ষাত্ ‘ঈশ্বর’
মোরে কৃপা কর, মুঞি — অযোগ্য পামর
सेइत ‘गोसा ञि’ तुमि - साक्षात् ‘ईश्वर’ ।
मोरे कृपा कर, मुञि - अयोग्य पामर ॥201॥
 
अनुवाद
चूँकि आप स्वयं वही परम पुरुषोत्तम भगवान हैं, अत: आप मुझ पर दयालु रहें। मैं एक पापी और अयोग्य व्यक्ति हूँ।
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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