श्री चैतन्य चरितामृत » लीला 2: मध्य लीला » अध्याय 18: श्री चैतन्य महाप्रभु द्वारा वृन्दावन में भ्रमण » श्लोक 196 |
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| | श्लोक 2.18.196  | ‘কর্ম’, ‘জ্ঞান’, ‘যোগ’ আগে করিযা স্থাপন
সব খণ্ডি’ স্থাপে ‘ঈশ্বর’, ‘তাঙ্হার সেবন’ | ‘कर्म’, ‘ज्ञान’, ‘योग’ आगे करिया स्थापन ।
सब ख ण्डि’ स्थापे ‘ईश्वर’, ‘ताँहार सेव न’ ॥196॥ | | अनुवाद | “कुरान में विभिन्न प्रकार की साधनों की चर्चा की गई है, जैसे कि कर्म, ज्ञान, योग और ईश्वर से मिलन। लेकिन अंत में इन सभी का खंडन किया जाता है और भगवान के व्यक्तिगत स्वरूप और उनकी उपासना की स्थापना होती है।” | | |
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