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श्लोक 195
श्लोक
2.18.195
মোক্ষাদি আনন্দ যার নহে এক ‘কণ’
পূর্ণানন্দ-প্রাপ্তি তাঙ্র চরণ-সেবন
मोक्षादि आनन्द यार नहे एक ‘कण’ ।
पूर्णानन्द - प्राप्ति ताँर चरण - सेवन ॥195॥
अनुवाद
मुक्ति का सुख, जिसमें मनुष्य भगवान् से एकाकार हो जाता है, वह भी भगवान् के चरणकमलों की सेवा करने से मिलने वाले आनंद का एक अंश के बराबर नहीं है।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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