श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 2: मध्य लीला  »  अध्याय 18: श्री चैतन्य महाप्रभु द्वारा वृन्दावन में भ्रमण  »  श्लोक 188
 
 
श्लोक  2.18.188 
যেই যেই কহিল, প্রভু সকলি খণ্ডিল
উত্তর না আইসে মুখে, মহা-স্তব্ধ হৈল
येइ येइ कहिल, प्रभु सकलि खण्डिल ।
उत्तर ना आइसे मुखे, महा - स्तब्ध हैल ॥188॥
 
अनुवाद
महाप्रभु ने उसके हर तर्क का खंडन किया, जिससे वह पूरी तरह से स्तब्ध हो गया और कुछ भी नहीं बोल सका।
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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