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श्लोक 2.18.186  |
চিত্ত আর্দ্র হৈল তাঙ্র প্রভুরে দেখিযা
‘নির্বিশেষ-ব্রহ্ম’ স্থাপে স্বশাস্ত্র উঠাঞা |
चित्त आर्द्र हैल ताँर प्रभुरे देखिया ।
‘निर्विशेष - ब्रह्म’ स्थापे स्वशास्त्र उठा ञा ॥186॥ |
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अनुवाद |
उस संत के हृदय को श्री चैतन्य महाप्रभु को देखकर द्रवित पाया। उन्होंने उनसे बात करने और अपने शास्त्र, कुरान के आधार पर निराकार ब्रह्म की स्थापना करने की इच्छा व्यक्त की। |
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