श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 2: मध्य लीला  »  अध्याय 18: श्री चैतन्य महाप्रभु द्वारा वृन्दावन में भ्रमण  »  श्लोक 184
 
 
श्लोक  2.18.184 
মৃগী-ব্যাধিতে আমি কভু হ-ই অচেতন
এই চারি দযা করি’ করেন পালন
मृगी - व्याधिते आमि कभु हइ अचेतन ।
एइ चारि दया करि’ करेन पालन ॥184॥
 
अनुवाद
“मिरगी की वजह से कई बार मेरी चेतना चली जाती है। मेरा ख्याल रखने का काम ये चारों दयावश करते हैं।”
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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