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श्लोक 2.18.184  |
মৃগী-ব্যাধিতে আমি কভু হ-ই অচেতন
এই চারি দযা করি’ করেন পালন |
मृगी - व्याधिते आमि कभु हइ अचेतन ।
एइ चारि दया करि’ करेन पालन ॥184॥ |
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अनुवाद |
“मिरगी की वजह से कई बार मेरी चेतना चली जाती है। मेरा ख्याल रखने का काम ये चारों दयावश करते हैं।” |
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