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श्लोक 2.18.176  |
শুনিযা পাঠান মনে সঙ্কোচ হ-ইল
হেন-কালে মহাপ্রভু ‘চৈতন্য’ পাইল |
शुनिया पाठान मने सङ्कोच हइल ।
हेन - काले महाप्रभु ‘चैतन्य’ पाइल ॥176॥ |
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अनुवाद |
यह चुनौती सुनकर, पाठान सिपाही झिझकने लगे। तब अचानक श्री चैतन्य महाप्रभु को होश आ गया। |
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