श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 2: मध्य लीला  »  अध्याय 18: श्री चैतन्य महाप्रभु द्वारा वृन्दावन में भ्रमण  »  श्लोक 175
 
 
श्लोक  2.18.175 
গৌডিযা — ‘বাটপাড’ নহে, তুমি — ‘বাটপাড’
তীর্থ-বাসী লুঠ’, আর চাহ’ মারিবার
गौड़िया - ‘बाटपा ड़’ नहे, तुमि - ‘बाटपा ड़’ ।
तीर्थ - वासी लुठ’, आर चा ह’ मारिबार ॥175॥
 
अनुवाद
“बंगाली तीर्थयात्री छलिया नहीं हैं। तुम छलिया हो, जो तीर्थयात्रियों को मारकर लूटना चाहते हो।”
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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