श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 2: मध्य लीला  »  अध्याय 18: श्री चैतन्य महाप्रभु द्वारा वृन्दावन में भ्रमण  »  श्लोक 167
 
 
श्लोक  2.18.167 
কৃষ্ণদাস — রাজপুত, নির্ভয সে বড
সেই বিপ্র — নির্ভয, সে — মুখে বড দড
कृष्णदास - राजपुत, निर्भय से बड़ ।
सेइ विप्र - निर्भय, से - मुखे बड़ दड़ ॥167॥
 
अनुवाद
राजपूत जाति के भक्त कृष्णदास बहुत निडर थे। सनोड़िया ब्राह्मण भी निडर था, इसलिए उसने बहुत बहादुरी से बात की।
 
 ✨ ai-generated
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2025 vedamrit. All Rights Reserved.