श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 2: मध्य लीला  »  अध्याय 18: श्री चैतन्य महाप्रभु द्वारा वृन्दावन में भ्रमण  »  श्लोक 161
 
 
श्लोक  2.18.161 
আচম্বিতে এক গোপ বṁশী বাজাইল
শুনি’ মহাপ্রভুর মহা-প্রেমাবেশ হৈল
आचम्बिते एक गोप वंशी बाजाइल ।
शुनि’ महाप्रभुर महा - प्रेमावेश हैल ॥161॥
 
अनुवाद
अचानक एक ग्वाले ने अपनी बाँसुरी बजाई, तो महाप्रभु तुरंत प्रेमविभोर हो उठे।
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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