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श्लोक 2.18.155  |
প্রাতঃ-কালে মহাপ্রভু প্রাতঃ-স্নান কৈল
‘বৃন্দাবন ছাডিব’ জানি’ প্রেমাবেশ হৈল |
प्रातः - काले महाप्रभु प्रातः - स्नान कैल ।
‘वृन्दावन छाड़ि ब’ जानि’ प्रेमावेश हैल ॥155॥ |
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अनुवाद |
अगले दिन, श्री चैतन्य महाप्रभु भोर में उठे। स्नान करने के बाद उन्हें यह ज्ञात हुआ कि अब उन्हें वृंदावन छोड़ना है, जिससे वो प्रेम में विभोर हो गए। |
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