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श्लोक 2.18.153  |
“তুমি আমায আনি’ দেখাইলা বৃন্দাবন
এই ‘ঋণ’ আমি নারিব করিতে শোধন |
“तुमि आमाय आ नि’ देखाइला वृन्दावन ।
एइ ‘ऋण’ आमि नारिब करिते शोधन ॥153॥ |
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अनुवाद |
श्री चैतन्य महाप्रभु बोले, "तुम मुझे यहाँ वृन्दावन दर्शन कराने के लिए ले आए हो। मैं इसके लिए तुम पर अत्यधिक ऋणी हूँ और शायद पूरा जीवन भी मैं इस ऋण को चुका नहीं पाऊँगा।" |
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