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श्लोक 2.18.152  |
যদ্যপি বৃন্দাবন-ত্যাগে নাহি প্রভুর মন
ভক্ত-ইচ্ছা পূরিতে কহে মধুর বচন |
यद्यपि वृन्दावन - त्यागे नाहि प्रभुर मन ।
भक्त - इच्छा पूरिते कहे मधुर वचन ॥152॥ |
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अनुवाद |
यद्यपि श्री चैतन्य महाप्रभु की इच्छा वृन्दावन छोड़ने की नहीं थी, परन्तु अपने भक्त की इच्छा पूरी करने के लिए मीठे वचन बोलने लगे। |
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