উদ্বিগ্ন হ-ইল প্রাণ, সহিতে না পারি
প্রভুর যে আজ্ঞা হয, সেই শিরে ধরি”
उद्विग्न हइल प्राण, सहिते ना पारि ।
प्रभुर ये आज्ञा हय, सेइ शिरे ध रि” ॥151॥
अनुवाद
"मेरा मन बेहद परेशान हो गया है, और मैं इस चिंता को बर्दाश्त नहीं कर सकता। अब सब कुछ आपकी अनुमति पर निर्भर करता है। आप जो भी करना चाहें, मुझे स्वीकार्य होगा।"