श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 2: मध्य लीला  »  अध्याय 18: श्री चैतन्य महाप्रभु द्वारा वृन्दावन में भ्रमण  »  श्लोक 148
 
 
श्लोक  2.18.148 
“সহিতে না পারি আমি লোকের গডবডি
নিমন্ত্রণ লাগি’ লোক করে হুডাহুডি
“सहिते ना पारि आमि लोकेर गड़बड़ि ।
निमन्त्रण ला गि’ लोक करे हुड़ाहुड़ि ॥148॥
 
अनुवाद
बलभद्र भट्टाचार्य जी ने ठाकुर जी से कहा, "मैं अब और संगत के शोर-शराबे को बर्दाश्त नहीं कर सकता। लोग एक के बाद एक निमंत्रण देने के लिए आ रहे हैं।"
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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