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श्लोक 2.18.148  |
“সহিতে না পারি আমি লোকের গডবডি
নিমন্ত্রণ লাগি’ লোক করে হুডাহুডি |
“सहिते ना पारि आमि लोकेर गड़बड़ि ।
निमन्त्रण ला गि’ लोक करे हुड़ाहुड़ि ॥148॥ |
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अनुवाद |
बलभद्र भट्टाचार्य जी ने ठाकुर जी से कहा, "मैं अब और संगत के शोर-शराबे को बर्दाश्त नहीं कर सकता। लोग एक के बाद एक निमंत्रण देने के लिए आ रहे हैं।" |
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