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श्लोक 2.18.147  |
গঙ্গা-তীর-পথে সুখ জানাইহ তাঙ্রে
ভট্টাচার্য আসি’ তবে কহিল প্রভুরে |
गङ्गा - तीर - पथे सुख जानाइह ताँरे ।
भट्टाचार्य आसि’ तबे कहिल प्रभुरे ॥147॥ |
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अनुवाद |
गंगा के किनारों से यात्रा करते हुए तुम्हें जो खुशी होगी, वो प्रभु को बताओ। इसलिए बलभद्र भट्टाचार्य ने श्री चैतन्य महाप्रभु से यह प्रार्थना की। |
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