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श्लोक 2.18.141  |
লোকের সঙ্ঘট্ট, আর নিমন্ত্রণের জঞ্জাল
নিরন্তর আবেশ প্রভুর না দেখিযে ভাল |
लोकेर सङ्घट्ट, आर निमन्त्रणेर जञ्जाल ।
निरन्तर आवेश प्रभुर ना देखिये भाल ॥141॥ |
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अनुवाद |
अब यहाँ पर लोगों की भीड़ होने लगी है और इन निमन्त्रणों से काफी उपद्रव मच रहा है। फिर से ये भगवान तो हमेशा उन्मत्त और भावुक रहते हैं। यहाँ पर मुझे स्थिति बहुत अच्छी नहीं लग रही। |
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