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अध्याय 18: श्री चैतन्य महाप्रभु द्वारा वृन्दावन में भ्रमण
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श्लोक 140
श्लोक
2.18.140
আজি আমি আছিলাঙ উঠাইলুঙ্ প্রভুরে
বৃন্দাবনে ডুবেন যদি, কে উঠাবে তাঙ্রে?
आजि आमि आछिलाङ उठाइ लुँ प्रभुरे ।
वृन्दावने डुबेन यदि, के उठाबे ताँरे ? ॥140॥
अनुवाद
बलभद्र भट्टाचार्य ने कहा, “चूँकि मैं आज यहाँ था, इसलिए महाप्रभु को बाहर निकालना मेरे लिए संभव हो सका। किन्तु यदि वे व्रंदावन में डूबने लगें, तो कौन उनकी सहायता करेगा?
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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