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श्लोक 2.18.134  |
প্রাতঃ-কালে অক্রূরে আসি’ রন্ধন করিযা
প্রভুরে ভিক্ষা দেন শালগ্রামে সমর্পিযা |
प्रातः - काले अक्रूरे आसि’ रन्धन करिया ।
प्रभुरे भिक्षा देन शालग्रामे समर्पिया ॥134॥ |
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अनुवाद |
प्रातःकाल वे अक्रूर तीर्थ आते और भोजन पकाते थे। फिर उसे शालग्राम शिला को भोग लगाते और बाद में श्री चैतन्य महाप्रभु को भोग लगाते। |
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