श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 2: मध्य लीला  »  अध्याय 18: श्री चैतन्य महाप्रभु द्वारा वृन्दावन में भ्रमण  »  श्लोक 126
 
 
श्लोक  2.18.126 
এইত’ মহিমা — তোমার ‘তটস্থ’-লক্ষণ
‘স্বরূপ’-লক্ষণে তুমি — ‘ব্রজেন্দ্র-নন্দন’
एइत’ महिमा - तोमार ‘तटस्थ’ - लक्षण ।
‘स्वरूप’ - लक्षणे तुमि - ‘व्रजेन्द्र - नन्दन’ ॥126॥
 
अनुवाद
"आपके ये गौरव केवल बाहरी विशेषताएँ हैं। असल में आप महाराज नंद के पुत्र हैं।"
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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