श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 2: मध्य लीला  »  अध्याय 18: श्री चैतन्य महाप्रभु द्वारा वृन्दावन में भ्रमण  »  श्लोक 119
 
 
श्लोक  2.18.119 
মৃগ-মদ বস্ত্রে বান্ধে, তবু না লুকায
‘ঈশ্বর-স্বভাব’ তোমার ঢাকা নাহি যায
मृग - मद वस्त्रे बान्थे, तबु ना लुकाय ।
‘ईश्वर - स्वभा व’ तोमार टाका नाहि याय ॥119॥
 
अनुवाद
जैसे कस्तूरी की सुगंध को कपड़े में लपेटकर भी छिपाया नहीं जा सकता, उसी प्रकार पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान के रूप में आपके गुणों को किसी भी तरह से छिपाया नहीं जा सकता।
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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