श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 2: मध्य लीला  »  अध्याय 18: श्री चैतन्य महाप्रभु द्वारा वृन्दावन में भ्रमण  »  श्लोक 116
 
 
श्लोक  2.18.116 
যস্ তু নারাযণṁ দেবṁ
ব্রহ্ম-রুদ্রাদি-দৈবতৈঃ
সমত্বেনৈব বীক্ষেত
স পাষণ্ডী ভবেদ্ ধ্রুবম্
यस्तु नारायणं देवं ब्रह्म - रुद्रादि - दैवतैः ।
समत्वेनैव वीक्षेत स पाषण्डी भवेदन्रुवम् ॥116॥
 
अनुवाद
“जो व्यक्ति ब्रह्मा और शिव जैसे देवताओं को नारायण के बराबर मानता है, उसे पापी या पाषंडी माना जाता है।”
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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