श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 2: मध्य लीला  »  अध्याय 18: श्री चैतन्य महाप्रभु द्वारा वृन्दावन में भ्रमण  »  श्लोक 112
 
 
श्लोक  2.18.112 
সন্ন্যাসী — চিত্-কণ জীব, কিরণ-কণ-সম
ষড্-ঐশ্বর্য-পূর্ণ কৃষ্ণ হয সূর্যোপম
सन्न्या सी - चित्कण जीव, किरण - कण - सम ।
षड् - ऐश्वर्य - पूर्ण कृष्ण हय सूर्योपम ॥112॥
 
अनुवाद
सन्यासी निश्चित ही पूर्ण का अंग होता है, जैसे धूप का चमकता सूक्ष्म कण सूर्य का अंग होता है। कृष्ण सूर्य के समान हैं, छः ऐश्वर्यों से भरे हुए; लेकिन जीव पूर्ण का केवल एक अंश मात्र होता है।
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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