श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 2: मध्य लीला  »  अध्याय 18: श्री चैतन्य महाप्रभु द्वारा वृन्दावन में भ्रमण  »  श्लोक 111
 
 
श्लोक  2.18.111 
প্রভু কহে, — ‘বিষ্ণু’ ‘বিষ্ণু’ ইহা না কহিবা!
জীবাধমে ‘কৃষ্ণ’-জ্ঞান কভু না করিবা!
प्रभु कहे, - ‘विष्णु’ ‘विष्णु’ इहा ना कहिबा! ।
जीवाधमे ‘कृष्ण’ - ज्ञान कभु ना करिबा! ॥111॥
 
अनुवाद
श्री चैतन्य महाप्रभु ने तुरंत कहा, "विष्णु! विष्णु! मुझे भगवान् मत कहो। जीव कभी भी कृष्ण नहीं बन सकता। ऐसी बात कभी मत कहना!"
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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