श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 2: मध्य लीला  »  अध्याय 18: श्री चैतन्य महाप्रभु द्वारा वृन्दावन में भ्रमण  »  श्लोक 106
 
 
श्लोक  2.18.106 
নৌকাতে কালীয-জ্ঞান, দীপে রত্ন-জ্ঞানে!
জালিযারে মূঢ-লোক ‘কৃষ্ণ’ করি’ মানে!
नौकाते कालीय - ज्ञान, दीपे रन - ज्ञाने! ।
जालियारे मूढ़ - लोक ‘कृष्ण’ करि’ माने! ॥106॥
 
अनुवाद
“ये मूर्ख समझते हैं कि नाव ही कालीय नाग है और मशाल की रोशनी उसके सिर पर सजे हुए मणियाँ है। लोग मछुआरे को भी कृष्ण समझने लगते हैं।”
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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