श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 2: मध्य लीला  »  अध्याय 18: श्री चैतन्य महाप्रभु द्वारा वृन्दावन में भ्रमण  »  श्लोक 104
 
 
श्लोक  2.18.104 
লোক কহে, — রাত্র্যে কৈবর্ত্য নৌকাতে চডিযা
কালীয-দহে মত্স্য মারে, দেউটী জ্বালিযা
लोक कहे , - रात्र्ये कैवर्त्य नौकाते चड़िया ।
कालीय - दहे मत्स्य मारे, देउटी ज्वालिया ॥104॥
 
अनुवाद
ये सम्माननीय लोग बोले, “रात के समय कालीयदह में एक मछुआरा अपनी नाव में मशाल जलाकर मछलियाँ पकड़ता है।
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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