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श्लोक 2.18.1  |
বৃন্দাবনে স্থির-চরান্
নন্দযন্ স্বাবলোকনৈঃ
আত্মানṁ চ তদ্-আলোকাদ্
গৌরাঙ্গঃ পরিতো ’ভ্রমত্ |
वृन्दावने स्थिर - चरान्नन्दयन्स्वावलोकनैः ।
आत्मानं च तदालोकाग़ौराङ्गः परितोऽभ्रमत् ॥1॥ |
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अनुवाद |
श्री चैतन्य महाप्रभु ने सारे वृन्दावन में भ्रमण कर सभी चर और अचर जीवों को अपनी दिव्य दृष्टि से प्रसन्न किया। प्रत्येक व्यक्ति को देखकर महाप्रभु को हर्ष होता। इस प्रकार भगवान गौरांग ने वृन्दावन का भ्रमण किया। |
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