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श्लोक 2.16.287  |
ভিক্ষাতে পণ্ডিতের স্নেহ, প্রভুর আস্বাদন
মনুষ্যের শক্ত্যে দুই না যায বর্ণন |
भिक्षाते पण्डितेर स्नेह, प्रभुर आस्वादन ।
मनुष्येर शक्त्ये दुइ ना याय वर्णन ॥287॥ |
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अनुवाद |
कोई भी सामान्य मनुष्य गदाधर पंडित के द्वारा परोसे गये स्नेहपूर्ण भोजन और भगवान श्री चैतन्य महाप्रभु के उस भोजन को चखने का वर्णन नहीं कर सकता। |
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