श्री चैतन्य चरितामृत » लीला 2: मध्य लीला » अध्याय 16: महाप्रभु द्वारा वृन्दावन जाने की चेष्टा » श्लोक 16-17 |
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| | श्लोक 2.16.16-17  | আচার্যরত্ন, বিদ্যানিধি, শ্রীবাস, রামাই
বাসুদেব, মুরারি, গোবিন্দাদি তিন ভাই
রাঘব পণ্ডিত নিজ-ঝালি সাজাঞা
কুলীন-গ্রাম-বাসী চলে পট্ট-ডোরী লঞা | आचार्य रत्न, विद्यानिधि, श्रीवास, रामाइ ।
वासुदेव, मुरारि, गोविन्दादि ति न भाइ ॥16॥
राघव पण्डित निज - झालि साजा ञा ।
कुलीन - ग्राम - वासी चले पट्ट - डोरी लञा ॥17॥ | | अनुवाद | आचार्य रत्न, विद्यानिधि, श्रीवास, रामाई, वासुदेव, मुरारी, गोविन्द और उसके दो भाई और राघव पंडित सहित नवद्वीप के सभी भक्त चले गए। राघव पंडित अपने साथ विभिन्न प्रकार के खाने के झोले लेकर चले। कुलीनग्राम के निवासी भी रेशमी रस्सियाँ लेकर चले। | | |
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