श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 2: मध्य लीला  »  अध्याय 16: महाप्रभु द्वारा वृन्दावन जाने की चेष्टा  »  श्लोक 147
 
 
श्लोक  2.16.147 
এই-মত কহি’ তাঙ্রে প্রবোধ করিলা
দুই-জনে শোকাকুল নীলাচলে আইলা
एइ - मत क हि’ ताँरे प्रबोध करिला ।
दुइ - जने शोकाकुल नीलाचले आइला ॥147॥
 
अनुवाद
इस प्रकार से सार्वभौम भट्टाचार्य ने गदाधर पण्डित में प्राण डाले। फिर वे दोनों अति शोकाकुल होकर जगन्नाथ पुरी, अर्थात् नीलाचल वापिस चले आये।
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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