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श्लोक 2.15.261  |
চৈতন্য-গোসাঞির নিন্দা শুনিল যাহা হৈতে
তারে বধ কৈলে হয পাপ-প্রাযশ্চিত্তে |
चैतन्य - गोसाञि र निन्दा शुनिल याहा हैते ।
तारे वध कैले हय पाप - प्रायश्चित्ते ॥261॥ |
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अनुवाद |
“यदि उस व्यक्ति को मार दिया जाए जिसने श्री चैतन्य महाप्रभु की निंदा की थी, तो उसके पापपूर्ण कर्म का प्रायश्चित्त हो सकता है।” |
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