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लीला 2: मध्य लीला
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अध्याय 15: महाप्रभु द्वारा सार्वभौम भट्टाचार्य के घर पर प्रसाद स्वीकार करना
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श्लोक 238
श्लोक
2.15.238
তথাপি এতেক অন্ন খাওন না যায
ভট্ট কহে, — জানি, খাও যতেক যুযায
तथापि एतेक अन्न खाओन ना याय ।
भट्ट कहे , - जानि, खाओ यतेक युयाय ॥238॥
अनुवाद
तब श्री चैतन्य महाप्रभु बोले, "यहाँ भोजन इतना अधिक है कि यह सब खा लेना असम्भव है |" भट्टाचार्य ने उत्तर दिया, "मैं समझता हूँ कि आप कितना खा सकते हैं |"
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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