श्री चैतन्य चरितामृत » लीला 2: मध्य लीला » अध्याय 15: महाप्रभु द्वारा सार्वभौम भट्टाचार्य के घर पर प्रसाद स्वीकार करना » श्लोक 235 |
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| | श्लोक 2.15.235  | ভট্ট কহে, — অন্ন, পীঠ, — সমান প্রসাদ
অন্ন খাবে, পীঠে বসিতে কাহাঙ্ অপরাধ? | भट्ट कहे , - अन्न, पीठ, - समान प्रसाद ।
अन्न खाबे, पीठे वसिते काहाँ अपराध ? ॥235॥ | | अनुवाद | भट्टाचार्य ने कहा, "भोजन और बैठने का स्थान दोनों ही भगवान की दया हैं। अगर आप बचे हुए भोजन को खा सकते हैं, तो इस स्थान पर आपके बैठने में क्या गलत है?" | | |
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