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श्लोक 2.15.159  |
নিজ-গুণ শুনি’ দত্ত মনে লজ্জা পাঞা
নিবেদন করে প্রভুর চরণে ধরিযা |
निज - गुण शुनि’ दत्त मने लज्जा पाञा ।
निवेदन करे प्रभुर चरणे धरिया ॥159॥ |
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अनुवाद |
जब चैतन्य महाप्रभु ने उसकी महिमा का वर्णन किया, तो वासुदेव दत्त अत्यंत लज्जित और विचलित हो गए। तब उन्होंने प्रभु के चरण कमलों को स्पर्श करते हुए विनम्र निवेदन किया। |
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