श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 2: मध्य लीला  »  अध्याय 15: महाप्रभु द्वारा सार्वभौम भट्टाचार्य के घर पर प्रसाद स्वीकार करना  »  श्लोक 159
 
 
श्लोक  2.15.159 
নিজ-গুণ শুনি’ দত্ত মনে লজ্জা পাঞা
নিবেদন করে প্রভুর চরণে ধরিযা
निज - गुण शुनि’ दत्त मने लज्जा पाञा ।
निवेदन करे प्रभुर चरणे धरिया ॥159॥
 
अनुवाद
जब चैतन्य महाप्रभु ने उसकी महिमा का वर्णन किया, तो वासुदेव दत्त अत्यंत लज्जित और विचलित हो गए। तब उन्होंने प्रभु के चरण कमलों को स्पर्श करते हुए विनम्र निवेदन किया।
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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