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अध्याय 15: महाप्रभु द्वारा सार्वभौम भट्टाचार्य के घर पर प्रसाद स्वीकार करना
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श्लोक 139
श्लोक
2.15.139
স্বযṁ ভগবান্ কৃষ্ণ — সর্বাṁশী, সর্বাশ্রয
বিশুদ্ধ-নির্মল-প্রেম, সর্ব-রসময
स्वयं भगवान्कृष्ण - सर्वांशी, सर्वाश्रय ।
विशुद्ध - निर्मल - प्रेम, सर्व - रसमय ॥139॥
अनुवाद
"कृष्ण पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान् हैं, सभी अवतारों के उद्गम और समस्त सृष्टि के स्रोत हैं। वे शुद्ध दिव्य प्रेम के स्वयं रूप हैं और सभी आनंद के भंडार हैं।"
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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